बधाई उन बच्चों को जिनकी मुर्गी ने पहला सुनहरा अण्डा दिया

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बुधवार, 17 जुलाई 2013

बन गये सब घनचक्कर

बन गये सब घनचक्कर
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इकलू चूजा खुश खुश लौटा है नानी के घर से। अपने घर वापस आकर और खुश था। एक एक कर अपने प्यारे खिलौनो से खेलने में मस्त हो गया। तभी मां ने उसके हाथ में पैसे देकर गर्मा गरम जलेबी लाने को कहा। जलेबी की बात सुनकर वह और खुश हो गया। मीठी रस से भरी जलेबी के नाम से ही उसके मुंह में पानी भर आया। खुश होते हुए वह थैला उठाए बाजार की ओर निकल पड़ा। वह सोच मन ही मन सोच रहा था ‘आज बहुत दिनों से घर लौटज्ञ हूं इसलिए मां मेरे लिए जलेबिया मंगवा रही है।
बाजार देखा तो वह दंग रह गया। बंदरू हलवाई की दुकान को जंगल की मुर्गियो ने घेर रखा है। गजब की भीड़ लगी हुई है। बावजूद इसके कि जलेबी के भाव बढ़े हुए है। जिसे देखो हर कोई जलेबी लेने की जल्दी में दिख रहा है। 
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‘‘भई! अचानक ऐसा क्या हो गया कि सभी को जलेबी ही चाहिए?’’ उसने पास खड़े निबलू नेवले से पूछा।
‘‘क्या तुम्हें मालूम नही?’’ उत्तर देने की बजाय निबलू प्रश्न दाग डाला। और इस तरह उसे घूरने लगा जैसे कि वह कोई बेवकूफी भरी बात कर रहा हो? 
‘‘चलो चलो पीछे लाईन में लगो। पंक्ति मत तोड़ो। देर से आते हो और बीच में घुसते हो।’’ कई जानवर उसे देख चिल्लाने लगे। कुछ तो उसे पीछे धकेलने लगे। अजीब सी रेलम-पेलम मची हुई है। इकलू ने बुरासा मंुह बनाया और पीछे जाकर पंक्ति में खड़ा हो गया। दोपहर बाद सका नंबर आया तब तक जलेबिया बिक चुकी थी। उसे थोड़ी जलेबी पर ही संतोष करना पड़ा।
इकलू चूजे को आज एक बात और अजीब दिखी। रास्ते पर आते जाते चलते सभी मुर्गियों ने लाल रंग के कपड़े पहन रखे है। किसी ने लाल रंग के सलवार कुर्ता पहना है तो कोई लाल चुनर ही ओढ़े हुए है। वहां हलवाई की दुकान पर भी सभी मुर्गिया लाल रंग के वस्त्रों में ही नजर आयी। चारांे ओर लाल रंग ही लाल रंग बिखरा हुआ था। इकलू को ध्यान आया कि आज उसकी मां ने भी लाल रंग की साड़ी पहन रखी है। जिसमें वह बहुत संदर लग रही थी।
‘‘लो मां सिर्फ दो ही जलेबी मिल पायी है.....’’ इकलू ने घर जाकर मां को जलेबी थमाते हुए कहा।
‘‘क्या कहा? सिर्फ देा ही जलेबी? हाय! मैं कैसे व्रत करूंगी?’’
‘‘आज कोई विशेष त्यौहार है मां?’’
‘‘बेटा! आज हम सीाी मुर्गियों का ्रत है। यह व्रत हमें लाल कपडत्रे पहनकर जलेबी खाकर ही पूरा करन है।’’
इकलू चकराया ‘‘यह कौनसा व्रत है मां?’’
‘‘यह मंगलकारी सब मनोकामना पूरी करने का वाला व्रत है। अभी कुछ दिन पहले ही एक बाबा ने हम सब मुर्गियों को यह व्रत सुझाया है। दरअसल सब मुर्गिया अपने अंडांे व चूजो के लिए चिन्तित थी। जैसे ही वह अण्डे देती है उनके अण्डे बाजार में बेचने के लिए उठा लिए जाते है। कुछ अण्डों से अगर चूजे निकल भी आये तो वह भी रसोईघर में पहुंच जाते है हलाल होने के लिए।’’
‘‘पर मां यह कोई नई बात तो नहीं। ऐसा तो हमेशा से होता रहा है।’’
‘‘तभी तो बाबा ने हमें तबाही से बचने के लिए यह उपाय सुझाया है। हमें हर रोज ण्डा देने के बाद भी संतान नहीं मिल रही थी।’’
‘कोई व्रत इसे कैसे रोक सकता है?’ इकलू के मन में जिज्ञासा भरा सवाल उठा और वह परोपकारी बाबा को देखने उस विशाल बरगद के नीचे पहुंच गया।
‘‘आओ बेटा इकलू। बड़े दिनो के बाद आये हो। नानी के यहां से अच्छे मोटे होकर लौटे हो।’’
‘अंएं ये क्या?’’ इकलू को बाबा की आवाज जानी पहचानी लगी। इकलू ने अपने दिमाग पर जोर डाला पर कुछ याद नहीं आया। 
‘‘क्या सोच रहे हो बेटा! क्या परीक्षा में फस्र्ट आना चाहते हो?’’
‘इन्हें तो सब मालूम है।’ प्रभावित होते हुए उसने सिर हिलाकर कहा- ‘‘हां बाबा, आपका आर्शीवाद मिले तो संभव हो। वर्ना मेरी बीमारी की वजह से पर्चे तो कुछ खास नहीं हुए है।’’
तो सुनो बेटा तुम आज से ही जलेबिया ंखाकर व्रत करना शुरू कर दो पर हां उत्तम फल पाने के लिए व्रत के साथ लाल रंग के कपड़े पहनना न भूलना।
‘अंएं ये क्या?’ यह सुनकर इकलू चूजा चैंका। सभी को यही व्रत? बाबा ने सभी मुर्गियो से भी यही कहा है। मुझे भी फस्र्ट आने के लिए यही कहा है। कुछ सोचता हुआ इकलू वहां से चल पड़ा। वह सीधा अपने मित्र टिकलू के पास जा पहुंचा और सारी बात कह सुनायी।
टिकलू बोला- ‘‘मुझे तो दाल में कुछकाला नजर आ रहा है।’’
‘‘अरे! मुझे तो पूरी दाल ही काली नजर आ रही है। यह कोई बाबा नहीं धूर्त है  जिसने सभी को धनचक्कर बना रखा है।’’
दोनों मित्र जंगल की टोह लेने चल पड़े। जंगल में जलेबियों और लाल कपड़ों का व्यापार जोरो से चल रहा था। ऊंचे दामो पर लोग जलेबी खरीद रहे थे। जलेबी की मांग बढ़ जाने से मिठाई वाले मनमानी कीमत ले रहे थे और कम तोल रहे थे। दुगनी कीमत लेकर दर्जी लाल वस्त्र सिल रहा था। बाजार में भी लाल कपड़ा धड़ाधड़ बिक रहा था।
‘‘लगता है पैसा कमाने के चक्कर में यह सब चक्कर चलाया गया है। टिकलू ने अपना संशय रखा तो इकलू बोला- ‘‘इस तरह तो मुर्गियों को बेवकूफ बनाया जा रहा है और सब आंख मूंदकर इस बात पर भरोसा कर रहे है।’’
इकलू और टिकलू ने मिलकर अपने मित्र चूजो को एकत्रित किया और इस षड़यंत्र का पर्दाफाश करने की एक योजना बनाई। योजनानुसार चूजों की भीड़ उसविशाल पेड़ की ओर बढ़ने लगी। एकाएक सभी चूजो ने मिलकर बरगद के नीचे बैठे उस बाबा पर हमला बोल दिया। वे उस पर चढ़कर अपनी चोंचे माने लगे। ढ़ोगी वेश में बैठा लोमड़ इस आक्रमण से बौखला कर ओढ़ा लबादा और मुखौटा उतार कर अपने असली वेश में आ गया। शोर सुन जंगल के दूसरे जानवर भी आ चुके थे। लोमड़ की असलियत सभी के समाने थी। सभी जानवर लोमड़ को खदेड़ते हुए शेरसिंह के पास ले गये।
लोमड़ ने अपना अपराध स्वीकार करते हुए कहा कि बन्दरू हलवाई, गरदू दर्जी तथा लंगूरी दरजन सभी ने मिलकर पैसा कमाने के लिए यह योजना बनाई थी। अभी तो केवल इस चक्कर में केवल मुर्गिया ही फंसी थी। उनका इरादा तो ये चक्कर चलाकर जंगल के सभी पशुपक्षियों को ठगने का था। जंगल के कानून के अनुसार सभी ठगों को सजा सुनाई गई। शेरसिंह ने सभी को ललकारते हुए कहा अब कभी ऐसे ठगों के चक्कर में आकर घनचक्कर मत बनना बेवकूफ मुर्गियों।

रविवार, 14 जुलाई 2013

फलों की बात करते तिलचट्टे

 चित्र गूगल से 
यह एक बंद कमरा है। जहां अंधेरा ही अंधेरा है। रेहान एक डरपोक लड़की है। वह बंद कमरे में जाने से डरती है। इसलिए उसे सब डरपोक लड़की कहते है, क्योंकि एक तो उसे अंधेरे से डर लगता है। दूसरे इसमें तिलचट्टे अर्थात काॅकरोच रहते है। जिनकी यहां पूरी काॅलोनी बसी हुई है।
रेहान उन्हें बहुत गौर से देखती है और यह भी जानती है कि अभी शाम होते ही तिलचट्टों का नाच शुरू होने वाला है- सामूहिक नृत्य। कुछ तिलचट्टे संगीत पैदा करेंगे तो कुछ नृत्य में शामिल होंगे। रेहान के लिए यह सब बहुत डरावना है।
 चित्र गूगल से 
 उसकी मुश्किल यह है कि ये केेले के टोकरे उसे इसी बंद कमरे के अंदर रखने है। अब्बू का आदेश जो है। जिसे मानना ही है। बंद कमरे के बाहर उसने कान लगा दिए।
सभी चित्र गूगल से 
तिलचट्टों का नाच शुरू हो गया है। संगीत की आवाज सुनाई दे रही है। कुछ देर तक कान टिकाकर रेहान सुनती रही।
इसके बाद सर्र ऽ सर्र ऽ ऽ करता बंद कमरे का दरवाजा खुला। रोशनी की एक लकीर भीतर घुसी।
भागो...भागो....जान बचाओ....खतरा! तिलचट्टे अपने अपने घरों में दुबकने लगे। उन्हें भागता दुबकता देख रेहान अपनी चीख नहीं रोक सकी। उसने सुना तिलचट्टे कह रहे थे- ‘‘भागो...भागो ... मनुष्य भीतर घुसे है।
- हां मैने भी देखा बड़ा टोकरा उठाए हुए है।
- क्या उन टोकरों में कुछ खाने का सामान है?
- मालूम नहीं, हिम्मत किसकी जो जाकर देखे।
- सुगंध तो अच्छी आ रही है।
- देखो अब शान्त हो जाओ। वो मनुष्य टोकरे में से कुछ रख रहे है।
रेहान पांव दबाकर भीतर बढ़ रही थी। डरे, दुबके तिलचट्टों की खुसर-पुसर उसे फिर सुनाई देने लगी। वे कह रहे थे-
- नाच का कार्यक्रम मनुष्य की वजह से बर्बाद हो गया भैया।
- बहुत बुरा हुआ।
उदास तिलचट्टों का बतियाना जारी था।
- हमें अपनी काॅलोनी में सुखपूर्वक रहने नहीं दिया जाता।
- मनुष्यों की शिकायत होनी चाहिये।
‘शिकायत’ रेहान चैंकी। उसने टोकरा नीचे रखते हुए देखा हर बिल में कुछ न कुछ बात चल रही है। टोकरा खाली कर वह उल्टे पांव लौटी। एक तिलचट्टे ने कमरा बंद होने की सूचना सबको दी। रेहान ने फिर से अपने कान बंद दरवाजे से सटा दिए। ताकि वो तिलचट्टों की बात सुन सके। वे कह रहे थे-
- हे कोई ऐसा बहादुर जो पता करके आये कि टोकरे में क्या सामान लाया गया है? हमारे काम का सामान है या कोई फालतू की चीज। किसी एक तिलचट्टे को ीोजा जाए।
एक पतला किन्तु फुर्तीला तिलचट्टा इसके लिए तैयार हुआ। हरिमो उसका नाम है। वह जितनी फुर्ती से गया उतनी ही जल्दी से टोकरी पर चढ़कर लौट आया। उसने सबको बताया - ‘‘ये टोकरी तो कच्चे केलो से भरी हुई है।’’
 चित्र गूगल से 
- कच्चे केल? ये कैसे कह सकते हो तुम कि केले कच्चे है?
- कच्चा केला हरे रंग का होता है। मैं विज्ञान का विद्यार्थी हूं। सिर पर लगे अपने  सिंगनल देने वाले दोनों एंटीना को झाड़ते हुए हरिमो ने बताया।
यह सुनकर रेहान को बेहद आश्चर्य हुआ।
- तो क्या अब वह हमारे काम के नहीं है हरिमो? नन्हें देशाजू ने पूछा।
- नहीं, देशाजू केले के पकने का इंतजार करना पड़ेगा हमें।
- हरिमो क्या तुम बता सकते हो कि केले पकने में कितने दिन लगेंगे?
- अरे मूर्ख पेड़ से केले टूट चुके है। वे अब कैसे पक सकते है?
- तो फिर केलो को पकने के बाद तोड़ा जाना चाहिये था। रेहान ने झांककर देखा। यह पोपले मुंह वाले पपलू की राय थी।
- क्या यह खाने लायक है?
- क्या हमें इन्हें खाना चाहिए अभी?
मामला कुछ तिलचट्टों को समझ नहीं आ रहा था कि क्या किया जाए?
- चलो, सब चलते है हरिमो के पिता नरिमो से पूछते है। वो वनस्पिति वैज्ञानिक है। उन्हें सब पता है। रेहान ने तिलचट्टों की एक टुकड़ी को दूसरी ओर जाते हुए देखा। यह वो जगह थी जो थोड़ी साफ, खुली व हवादार थी। हरिमो के पिता नरिमो ने सारी बात पहले समझी कि तिलचट्टो को क्या समझना है। फिर कहने लगे- ‘‘मैं अपने अध्ययन के अनुभव पर कुछ कह सकता हूं। सब इन बिन्दुओं पर ध्यान दो-
*कच्चा केला हरा होता है पर पकने के बाद वह पीला हो जाता है।
 *कच्चा केला फीका होता है पर पक्का केला मीठा।
कच्चा केला हरा होता है पर पकने के बाद वह पीला - चित्र गूगल से 
बहुत बढि़या बात। सब तिलचट्टे खुश होने लगे। कुछ कहने लगे- हमें केले पकने का इंतजार करना पड़ेगा। उनमें से एक तिलचट्टे ने अपने सिर पर बनी दोनो गोल आंखों को घुमाते हुए पूछा- पर केला पकेगा कैसे? नरिमो ने फिर कुछ बिन्दु ध्यान से सुनने के लिए कहे-
 *केले के छिलके में पर्णहरित अर्थात जिसे तुम क्लोरोफिल भी कहते हो, होता है। वही पर्णहरित इनके पकने में मददगार होता है।
 *तुम्हें सबको पता होना चाहिए कि पेड़ से टूटने के बाद भी केले सांस लेते है। छिलके में सूक्ष्म छिद्रो जिसे हमलोग ‘रन्ध्र’ कहते है उससे हवा बाहर आती जाती है। हवा के साथ ही आॅक्सीजन अन्दर जाती है। इस तरह छिलके सांस लेते है और क्लोरोफिल अपना काम करना जारी रखता है। सब पूरे ध्यान से सुनो। अब जो मैं बात बता रहा हूं वह बहुत खास बात है-
 *क्लोरोफिल का काम होता है जरूरी हार्मोन पैदा करके फल के भीतर पहुंचाना। जो वह निरंतर करता रहता है।
 *धीरे धीरे केले का हरा छिलका जो मोटा होता है अब पतला होकर पीला होता जाता है।
हां, यह बिल्कुल सही है एक बूढ़े तिलचट्टे ने कहा। मैंने हरे कच्चे केले और पक्के पीले केले दोनों ही देखे है। नरिमो ने अपनी बात आगे जारी रखते कहा- कुछ बिन्दु और सुनो-
 *क्लोरोफिल या पर्णहरित जो पोषक तत्व केले में डालता है उसी से फल का स्टार्च शूगर में बदल जाता है। इस तरह फीका केला मीठा हो जाता है।
 चित्र गूगल से 
बहुत खूब-2 सब नाचने लगे। क्या ऐसा सब फलों के साथ होता है? एक लंगड़े तिलचट्टे ने पूछा। क्या हमें इनके पककर मीठे होने का इंतजार करना पड़ेगा। आम की तरह ही। कच्चा आम भी तो पककर मीठा हो जाता है। क्या सब फलों के साथ ऐसा होता है?
नहीं, नीबू के साथ तो ऐसा नहीं है। कच्चे नीबू का छिलका हरा और मोटा होता है पर पकने के बाद पीला और पतला हो जाता है, किन्तु उसका रस तो खट्टा ही रहता है। लंगड़े तिलचट्टे ने जब ऐसा कहा तो सब नरिमो का मुंह देखने लगे।
- फलों के रंग बदलने की बात तुमने सही कही। पेड़ पर लगे कई कच्चे फलों का रंग अलग होता है जो पकने के साथ ही बदलता जाता है। ब्लैकबेरी को ही लो। पहले लाल होती है फिर पककर काली हो जाती है।
  पहले लाल होती है फिर पककर काली-चित्र गूगल से 
बड़ा विचित्र संसार है फलों का। इनके रंग और स्वाद बदल जाते है। फिर इनके गुणों में भी बदलाव आ जाता है। पकने के बाद फल खाने लायक और अधिक फायदा देने वाले हो जाते है। जो कुछ मैं जानता था तुम सबको बता दिया। 
रेहान को तिलचट्टों की बाते बड़ी रोचक लगी। ये तो बड़े समझदार है। मैं बेकार ही इनसे डरती हूं। उसने बंद दरवाजे की दरार से झांककर देखना चाहा। धीरे से दरवाजा खोला। दरवाजे के खुलते ही तिलचट्टे फिर भागे। एक नादान तिलचट्टा रेहान के पांव पर चढ़ आया। पांव से होता हुआ फ्राॅक पर जा पहुचा।
उई ऽ आ! उईऽ ऽ रेहान चिल्लाती हुई कूदने लगी। उसका शोर सुन तिलचट्टे डर के मारे फिर इधर उधर दुबकने लगे। रेहान को चिल्लाते देख मां बोली- ‘‘क्या डरपोक लड़की है।’’