बधाई उन बच्चों को जिनकी मुर्गी ने पहला सुनहरा अण्डा दिया

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गुरुवार, 3 सितंबर 2009

झीलों की नगरी

‘‘मम्मी-मम्मी, भैया आ गया,’’ शोर मचाती हुई जया बाहर की ओर दौड़ी। जय ऑटो रिक्शा से अपना सामान उतार रहा था। वह अपने तीन दिन के स्काउट कैंप से लौटा था। इस बार उस का कैंप उदयपुर शहर में लगा था। जया की आवाज सुन माता-पिता, दोनों ही दरवाजे तक आ पहुंचे थे।‘‘कहो बेटा, कुशल से तो हो?’’ पिता ने पूछते हुए उसके सिर पर हाथ फेरा।जय को देखते ही मां की आंखें गीली हो गई थीं। जय भी आगे बढ़ कर उन से लिपट गया। सातवीं कक्षा में पढ़ने वाला जय पहली बार अकेला घर वालों से दूर दूसरे शहर गया था।‘‘इस बार गरमी जल्दी पड़ने लगी है। कहो, उदयपुर का मौसम कैसा था?’’ पंखा तेज करते हुए पिता ने पूछा।‘‘उदयपुर के मौसम की कुछ मत पूछिए। सचमुच वह राजस्थान का कश्मीर है। चारों ओर हरी भरी पहाड़ियां, बाग, बगीचे और पानी से लबालब भरी झीलें मन में शीतलता भर देती हैं।’’ जूते मोजे एक तरफ रखते हुए वह पिता के पास सोफे पर बैठ गया। ‘‘झीलों की नगरी उदयपुर में देखने लायक कई जगह हैं।’’मां जय के लिए दूध ले आई थीं, जिसे वह पीने लगा। थोड़ी देर बाद वह सभी को एलबम दिखाने लगा,‘‘यह देखो, यह सहेलियों की बाड़ी की छतरी है। सफेद पत्थरों की बनी हुई फुहारों वाली छतरी। जया, इस सफेद बड़ी छतरी के चारों तरफ बड़ा पानी का हौज है। हौज के चारों कोनों पर काले पत्थरों की छतरियां हैं। इन छतरियों और हौज के चारों ओर फुहारों की ऐसी सुंदर तकनीक है जिस के कारण ऐसा लगता है, जैसे सावन की झड़ी लग गई हो।’’जय आगे बोला- ‘‘हम सबसे पहले फतहसागर घूमे। इस चित्र में देखो। कहते हैं, इस झील का निर्माण एक धनी बनजारे ने करवाया था। इसके एक ओर अरावली की पहाड़िया हैं और दूसरी ओर लंबी सर्पीली सड़क है। सचमुच, सुबह की सैर का आनंद आ गया।‘‘इसी के दूसरी ओर मोती मगरी की पहाड़ी पर महाराणा प्रताप का स्मारक बना हुआ है। यह देखो, महाराणा प्रताप की और उनके प्रिय घोड़े चेतक की प्रतिमा।’’‘‘जय, यह वही घोड़ा है, जिस ने प्रसिद्ध हल्दी घाटी के युद्ध में राणा प्रताप का साथ दिया था।’’‘‘हां पापा, मुझे मालूम है। हां, तो मैं मोती मगरी की बात कर रहा था, वहां से शहर देखना बहुत अच्छा लगा। हम ने वहां लगी दूरबीन से शहर का नजारा देखा।’’‘‘भैया, क्या तुम ने वहां झील की सैर नहीं की?’’‘‘क्यों नहीं, क्यों नहीं... हमने बोटिंग का भी आनंद लिया। नाव में बैठ कर हम फतहसागर झील के बीच टापू पर बने नेहरु द्वीप उद्यान गए। वहां से लौट कर हमने सुखाड़िया सर्कल के बंबइया बाजार में नाश्ता किया।‘‘इसके बाद हमने भारतीय लोक कला मंडल देखा। तरह तरह के मुखौटे और कठपुतलियों को देख हम खूब हंसे। इसके बाद हम राजमहल देखने के लिए रवाना हो गए।‘‘उदयपुर का राजमहल पिछोला झील के किनारे बना हुआ है। हाथी पोल से गुजरता हुआ सीधा रास्ता राजमहल की बड़ी पोल तक पहुंचता है। महल में देखने लायक कई जगहें थीं, पर मुझे मोर चौक मंे बने रंगीन कांच के टुकड़ों के मोर बहुत पसंद आए। राजमहल देखने में हमें 2-3 घंटे लगे।‘‘अब तक पेट में चूहे दौड़ने लगे थे। थकान के साथ-साथ भूख से सब व्याकुल हो रहे थे। हमने वहीं पास के एक होटल में खाना खाया।भर पेट खाना खाने के बाद हमें आलस घेरने लगा। हम सभी सुस्ताना चाहते थे, इसलिए हमारे ‘सर’ हमें गुलाब बाग उद्यान ले गए। जहां विशाल पेड़ों की छाया में हमने हरी दूब पर कुछ देर विश्राम किया।‘‘वहां का चिड़ियाघर देखते हुए हमारे कुछ साथियों ने गोलगप्पे खाए तो कुछ ने आईसक्रीम। किंतु मैंने जया के लिए यहां से एक खिलौना खरीदा।’’ कहते हुए उसने वह खिलौना जया को दे दिया।‘डुग...डुग...डुग...डुग...,’ खिलौना बजने लगा। जया खुश हो गई। उसने फिर बजाया। ‘डुग...डुग...डुग...डुग...,’ और बाहर दौड़ गई।‘‘बेटा, यह चित्र कहां का हैं?’’ मम्मी ने एक चित्र पर उंगली रखते हुए पूछा।‘‘मां, यह लेक पैलेसे होटल है। पहले यह जगनिवास महल था। बाद में इसे होटल बना दिया गया। महाराणा जगतसिंह ने इसेबनवाया था।‘‘यह पिछोला झील के एक टापू पर बना हुआ है। दूसरे टापू पर जगमंदिर महल बना हुआ है।’’‘‘क्या तुम वहां गए?’’‘‘नहीं मां, बस दूर से ही संतोष करना पड़ा। हम दूध तलाई पार्क जरूर गए थे। सुना है, वहां एक म्यूजिकल फाउंटेन लगा है। किंतु उसके चालू होने का समय निश्चित है और हम लौटने की जल्दी में थे।‘‘लौटते समय मैंने वहां की सजी धजी दुकानों पर बहुत कुछ देखा। छापी हुई सुंदर चादरें, बंधेज की साड़ियां, जिन्हें मैं मम्मी के लिए लेना चाहता था और पापा आप के लिए मोचड़ियां। किंतु दुख है कि मैं उन्हें ला नहीं सका, क्योंकि इतने पैसे मेरे पास नहीं था।’’ कहता हुआ जय उदास हो गया।‘‘कोई बात नहीं मेरे नन्हंे स्काउट... इतनी कम उमz में तुम एक सुंदर शहर घूम आए, क्या यह कम खुशी की बात है। मेरा वादा रहा कि अगली छुट्टियों में हम सब उदयपुर घूमने जाएंगे। तब तुम हमारे गाइड बनोगे,’’ पिताजी ने जय की पीठ थपथपाते हुए कहा।‘‘हां... हमारे नन्हें-मुन्ने गाइड, बोलो जयहिंद... जयहिंद...जयहिंद...’’ मां सलाम करते हुए कदमताल करने लगीं। यह देख सभी खिल उठे।