टीटू गिलहरी और चिंकी चिड़िया दोनों पड़ोसिन थी। टीटू का घर पेड़ की खोखल था और चिंकी का घोंसला पेड़ की शाखाओं पर। चिंकी जब दाना चुगने जाती तब टीटू सभी बच्चों का ध्यान रखती।
एक दिन बच्चे आपस में झगड़ने लगे। टीटू के बच्चों का कहना था कि पेड़ उनका है। चिंकी के बच्चे भी यही बात दोहरा रहे थे कि पेड़ उनका है।
लड़ते-लड़ते बच्चों में झगड़ा बढ़ गया। टीटू के बच्चों ने चिंकी के बच्चों के शरीर में अपने पंजे चुभा दिए तो चिंकी के बच्चों ने टीटू के बच्चों की पूंछ खींच ली। टीटू के बच्चे दर्द से चिल्लाने लगे। चिंकी के बच्चों के भी खून बहने लगा यह देख टीटू उन्हें समझाने लगी -
‘‘हम पड़ौसी है। हमें मिलजुल कर रहना चाहिए....’’
‘‘किन्तु मां चिंकी चिड़िया के बच्चे सब फलों को झूठा कर देते हैं, भला हम झूठे फल क्यों खाएं, जबकि पेड़ हमारा है।’’ टीटू के बच्चे एक स्वर में बोले।
‘‘तुम कैसे कह सकते हो कि ये पेड़ तुम्हारा है?’’ चिंकी के बच्चों ने प्रश्न किया।
हम पेड़ के तने में रहते है। हमारा जन्म इसी खोखल में हुआ। पेड़ का तना हमारा तो शाखाएं हमारी। शाखाएं हमारी तो फल हमारे। टीटू के बच्चों ने जवाब दिया।
यह सुन चिंकी के बच्चे फुर्र से उड़कर शाखाओं पर जा बैठे और कहने लगे पेड़ हमारा है। इसकी टहनियों पर हमारा बसेरा है। इस पर हमारा नीड़ बना हुआ है। जिसमें हमने आंखे खोली। हम तुम्हे टहनियों तक नहीं आने देंगे और न ही इसके फल खाने देंगे।
टीटू गिलहरी यह सुन बड़ी परेशान हुई। बच्चे लड़ाई पर उतारू थे और एक दूसरे को पेड़ से भगाना चाहते थे। वह उन्हें समझाने लगी-
बच्चों, मेरी बात सुनो। बात उस समय की है जब तुम लोगों का जन्म भी नहीं हुआ था। मैंने और चिंकी ने अण्डे दिए अभी एक दिन भी नहीं गुजरा था कि आसमान में अंधेरा छा गया। तेज हवाएं चलने लगी। डर के मारे चिंकी शोर मचाने लगी। उसे डर था कि शाखाएं हिलने से उसका घोसला नीचे गिर जाएगा। घोंसला गिर जाएगा तो फिर उसमें रखे अण्डे भी गिर कर फूट जायेगे।
तब मैंने और चिंकी ने मिलकर अण्डों को खोखल में सुरक्षित रख दिए। अभी कुछ देर हुई थी कि पानी बरसने लगा। पानी इतना बरसा, इतना बरसा कि नीचे बहता हुआ पानी हमारे घर तक पहुंचने लगा।
हमें फिर चिंता होने लगी। हमारा घर डूब गया तो ये पानी अण्डे बहा ले जायगा। तब मैंने और चिंकी ने मिलकर सभी अण्डों को घोंसले में पहुंचाया। फिर हम दोनों ने पत्तों से घोंसले को ढक दिया। जैसे-तैसे रात बीती। सुबह पौ फटने के बाद हमने राहत की सांस ली। बरसात बंद हो चुकी थी। देखा बच्चों हमने एक दूसरे के सहारे आंधी बरसात को झेला था। तब से अब तक हम अच्छे पड़ौसियों की तरह आपस में मदद करते आये हैं।
‘‘पड़ौसी एक दूसरे के काम आते हैं और सुख-दुख के साथी है बच्चों।’’ अब तक चिंकी चिड़िया भी दाना चुगकर लौट आयी थी। सभी बच्चों में बराबर अनाज के दाने बांटते हुए बोली।
परन्तु बच्चे कहने लगे, चिंकी चिड़िया को यह पेड़ छोड़ना होगा। अपने बच्चों के साथ कहीं ओर चली जाए। चिंकी के बच्चे भी यही बात अपनी मां के सामने दोहरा रहे थे।
दोनों की माताएं समझा-समझाकर थक गई पर बच्चे नहीं माने। अपनी-अपनी जिद पर अड़े रहे। अंत में टीटू और चिंकी दोनों ने पेड़ छोड़ने का मन में विचार बना लिया।
उधर बिल में छिपा सांप कब से यह तमाशा देख रहा था। आज उचित मौका देखकर वह बाहर निकला और पेड़ पर चढ़ने लगा। उसने सोचा पहले गिलहरी के बच्चों को निगलेगा फिर चिड़िया के बच्चों को। बहुत दिनों से वह इनके नरम नरम मांस खाने की फिराक में था किन्तु इनकी मैत्री को देखते हुए यह संभव नहीं हो रहा था।
सांप को पेड़ के तने पर चढ़ते हुए चिंकी चिड़िया ने देख लिया। वह जोर से चिल्लाई,
सावधान टीटू बहन, सांप ऊपर आ रहा है। अपने बच्चों को बचाना। ‘‘उन्हें मेरे घोंसलें में छिपा दो’’ - कहने के बाद वह पेड़ के तने पर चोंचे मारने लगी।
जहां जहां चिंकी की चोंच लगी पेड़ से गाढ़ा चिपचिपा दूध बहने लगा। चिपचिपे गोंद के कारण सांप का पेड़ पर चढ़ना मुश्किल होने लगा। इधर टीटू ने एक-एक कर सभी बच्चों को चिंकी के घोंसले में पहुंचा दिया। चिंकी के साथ उसके बच्चे भी मदद कर रहे थे। हालांकि अभी उनकी चोंचे नर्म और नाजुक थी।
थक हार कर सांप वापस बिल में लौट गया। किन्तु अभी खतरा टला नहीं था। कलुवा कौवे ने जब एक ही घोंसले में इतने सारे बच्चे देखे तो उसने आक्रमण कर दिया। टीटू और चिंकी ने कौवे से जमकर मुकाबला किया और उसे मार भगाया।
टीटू और चिंकी के बच्चों ने एकता की ताकत को देख लिया था और साथ ही में पड़ौसी के महत्त्व को भी समझ लिया था। अब उन्हें मां के समझाने की जरूरत नहीं थी। उनकी लड़ाई खत्म हो चुकी थी। वे सब पहले जैसे मिलजुल कर रहने लगे।
एक दिन बच्चे आपस में झगड़ने लगे। टीटू के बच्चों का कहना था कि पेड़ उनका है। चिंकी के बच्चे भी यही बात दोहरा रहे थे कि पेड़ उनका है।
लड़ते-लड़ते बच्चों में झगड़ा बढ़ गया। टीटू के बच्चों ने चिंकी के बच्चों के शरीर में अपने पंजे चुभा दिए तो चिंकी के बच्चों ने टीटू के बच्चों की पूंछ खींच ली। टीटू के बच्चे दर्द से चिल्लाने लगे। चिंकी के बच्चों के भी खून बहने लगा यह देख टीटू उन्हें समझाने लगी -
‘‘हम पड़ौसी है। हमें मिलजुल कर रहना चाहिए....’’
‘‘किन्तु मां चिंकी चिड़िया के बच्चे सब फलों को झूठा कर देते हैं, भला हम झूठे फल क्यों खाएं, जबकि पेड़ हमारा है।’’ टीटू के बच्चे एक स्वर में बोले।
‘‘तुम कैसे कह सकते हो कि ये पेड़ तुम्हारा है?’’ चिंकी के बच्चों ने प्रश्न किया।
हम पेड़ के तने में रहते है। हमारा जन्म इसी खोखल में हुआ। पेड़ का तना हमारा तो शाखाएं हमारी। शाखाएं हमारी तो फल हमारे। टीटू के बच्चों ने जवाब दिया।
यह सुन चिंकी के बच्चे फुर्र से उड़कर शाखाओं पर जा बैठे और कहने लगे पेड़ हमारा है। इसकी टहनियों पर हमारा बसेरा है। इस पर हमारा नीड़ बना हुआ है। जिसमें हमने आंखे खोली। हम तुम्हे टहनियों तक नहीं आने देंगे और न ही इसके फल खाने देंगे।
टीटू गिलहरी यह सुन बड़ी परेशान हुई। बच्चे लड़ाई पर उतारू थे और एक दूसरे को पेड़ से भगाना चाहते थे। वह उन्हें समझाने लगी-
बच्चों, मेरी बात सुनो। बात उस समय की है जब तुम लोगों का जन्म भी नहीं हुआ था। मैंने और चिंकी ने अण्डे दिए अभी एक दिन भी नहीं गुजरा था कि आसमान में अंधेरा छा गया। तेज हवाएं चलने लगी। डर के मारे चिंकी शोर मचाने लगी। उसे डर था कि शाखाएं हिलने से उसका घोसला नीचे गिर जाएगा। घोंसला गिर जाएगा तो फिर उसमें रखे अण्डे भी गिर कर फूट जायेगे।
तब मैंने और चिंकी ने मिलकर अण्डों को खोखल में सुरक्षित रख दिए। अभी कुछ देर हुई थी कि पानी बरसने लगा। पानी इतना बरसा, इतना बरसा कि नीचे बहता हुआ पानी हमारे घर तक पहुंचने लगा।
हमें फिर चिंता होने लगी। हमारा घर डूब गया तो ये पानी अण्डे बहा ले जायगा। तब मैंने और चिंकी ने मिलकर सभी अण्डों को घोंसले में पहुंचाया। फिर हम दोनों ने पत्तों से घोंसले को ढक दिया। जैसे-तैसे रात बीती। सुबह पौ फटने के बाद हमने राहत की सांस ली। बरसात बंद हो चुकी थी। देखा बच्चों हमने एक दूसरे के सहारे आंधी बरसात को झेला था। तब से अब तक हम अच्छे पड़ौसियों की तरह आपस में मदद करते आये हैं।
‘‘पड़ौसी एक दूसरे के काम आते हैं और सुख-दुख के साथी है बच्चों।’’ अब तक चिंकी चिड़िया भी दाना चुगकर लौट आयी थी। सभी बच्चों में बराबर अनाज के दाने बांटते हुए बोली।
परन्तु बच्चे कहने लगे, चिंकी चिड़िया को यह पेड़ छोड़ना होगा। अपने बच्चों के साथ कहीं ओर चली जाए। चिंकी के बच्चे भी यही बात अपनी मां के सामने दोहरा रहे थे।
दोनों की माताएं समझा-समझाकर थक गई पर बच्चे नहीं माने। अपनी-अपनी जिद पर अड़े रहे। अंत में टीटू और चिंकी दोनों ने पेड़ छोड़ने का मन में विचार बना लिया।
उधर बिल में छिपा सांप कब से यह तमाशा देख रहा था। आज उचित मौका देखकर वह बाहर निकला और पेड़ पर चढ़ने लगा। उसने सोचा पहले गिलहरी के बच्चों को निगलेगा फिर चिड़िया के बच्चों को। बहुत दिनों से वह इनके नरम नरम मांस खाने की फिराक में था किन्तु इनकी मैत्री को देखते हुए यह संभव नहीं हो रहा था।
सांप को पेड़ के तने पर चढ़ते हुए चिंकी चिड़िया ने देख लिया। वह जोर से चिल्लाई,
सावधान टीटू बहन, सांप ऊपर आ रहा है। अपने बच्चों को बचाना। ‘‘उन्हें मेरे घोंसलें में छिपा दो’’ - कहने के बाद वह पेड़ के तने पर चोंचे मारने लगी।
जहां जहां चिंकी की चोंच लगी पेड़ से गाढ़ा चिपचिपा दूध बहने लगा। चिपचिपे गोंद के कारण सांप का पेड़ पर चढ़ना मुश्किल होने लगा। इधर टीटू ने एक-एक कर सभी बच्चों को चिंकी के घोंसले में पहुंचा दिया। चिंकी के साथ उसके बच्चे भी मदद कर रहे थे। हालांकि अभी उनकी चोंचे नर्म और नाजुक थी।
थक हार कर सांप वापस बिल में लौट गया। किन्तु अभी खतरा टला नहीं था। कलुवा कौवे ने जब एक ही घोंसले में इतने सारे बच्चे देखे तो उसने आक्रमण कर दिया। टीटू और चिंकी ने कौवे से जमकर मुकाबला किया और उसे मार भगाया।
टीटू और चिंकी के बच्चों ने एकता की ताकत को देख लिया था और साथ ही में पड़ौसी के महत्त्व को भी समझ लिया था। अब उन्हें मां के समझाने की जरूरत नहीं थी। उनकी लड़ाई खत्म हो चुकी थी। वे सब पहले जैसे मिलजुल कर रहने लगे।