बन गये सब घनचक्कर
इकलू चूजा खुश खुश लौटा है नानी के घर से। अपने घर वापस आकर और खुश था। एक एक कर अपने प्यारे खिलौनो से खेलने में मस्त हो गया। तभी मां ने उसके हाथ में पैसे देकर गर्मा गरम जलेबी लाने को कहा। जलेबी की बात सुनकर वह और खुश हो गया। मीठी रस से भरी जलेबी के नाम से ही उसके मुंह में पानी भर आया। खुश होते हुए वह थैला उठाए बाजार की ओर निकल पड़ा। वह सोच मन ही मन सोच रहा था ‘आज बहुत दिनों से घर लौटज्ञ हूं इसलिए मां मेरे लिए जलेबिया मंगवा रही है।
बाजार देखा तो वह दंग रह गया। बंदरू हलवाई की दुकान को जंगल की मुर्गियो ने घेर रखा है। गजब की भीड़ लगी हुई है। बावजूद इसके कि जलेबी के भाव बढ़े हुए है। जिसे देखो हर कोई जलेबी लेने की जल्दी में दिख रहा है।
‘‘भई! अचानक ऐसा क्या हो गया कि सभी को जलेबी ही चाहिए?’’ उसने पास खड़े निबलू नेवले से पूछा।
‘‘क्या तुम्हें मालूम नही?’’ उत्तर देने की बजाय निबलू प्रश्न दाग डाला। और इस तरह उसे घूरने लगा जैसे कि वह कोई बेवकूफी भरी बात कर रहा हो?
‘‘चलो चलो पीछे लाईन में लगो। पंक्ति मत तोड़ो। देर से आते हो और बीच में घुसते हो।’’ कई जानवर उसे देख चिल्लाने लगे। कुछ तो उसे पीछे धकेलने लगे। अजीब सी रेलम-पेलम मची हुई है। इकलू ने बुरासा मंुह बनाया और पीछे जाकर पंक्ति में खड़ा हो गया। दोपहर बाद सका नंबर आया तब तक जलेबिया बिक चुकी थी। उसे थोड़ी जलेबी पर ही संतोष करना पड़ा।
इकलू चूजे को आज एक बात और अजीब दिखी। रास्ते पर आते जाते चलते सभी मुर्गियों ने लाल रंग के कपड़े पहन रखे है। किसी ने लाल रंग के सलवार कुर्ता पहना है तो कोई लाल चुनर ही ओढ़े हुए है। वहां हलवाई की दुकान पर भी सभी मुर्गिया लाल रंग के वस्त्रों में ही नजर आयी। चारांे ओर लाल रंग ही लाल रंग बिखरा हुआ था। इकलू को ध्यान आया कि आज उसकी मां ने भी लाल रंग की साड़ी पहन रखी है। जिसमें वह बहुत संदर लग रही थी।
‘‘लो मां सिर्फ दो ही जलेबी मिल पायी है.....’’ इकलू ने घर जाकर मां को जलेबी थमाते हुए कहा।
‘‘क्या कहा? सिर्फ देा ही जलेबी? हाय! मैं कैसे व्रत करूंगी?’’
‘‘आज कोई विशेष त्यौहार है मां?’’
‘‘बेटा! आज हम सीाी मुर्गियों का ्रत है। यह व्रत हमें लाल कपडत्रे पहनकर जलेबी खाकर ही पूरा करन है।’’
इकलू चकराया ‘‘यह कौनसा व्रत है मां?’’
‘‘यह मंगलकारी सब मनोकामना पूरी करने का वाला व्रत है। अभी कुछ दिन पहले ही एक बाबा ने हम सब मुर्गियों को यह व्रत सुझाया है। दरअसल सब मुर्गिया अपने अंडांे व चूजो के लिए चिन्तित थी। जैसे ही वह अण्डे देती है उनके अण्डे बाजार में बेचने के लिए उठा लिए जाते है। कुछ अण्डों से अगर चूजे निकल भी आये तो वह भी रसोईघर में पहुंच जाते है हलाल होने के लिए।’’
‘‘पर मां यह कोई नई बात तो नहीं। ऐसा तो हमेशा से होता रहा है।’’
‘‘तभी तो बाबा ने हमें तबाही से बचने के लिए यह उपाय सुझाया है। हमें हर रोज ण्डा देने के बाद भी संतान नहीं मिल रही थी।’’
‘कोई व्रत इसे कैसे रोक सकता है?’ इकलू के मन में जिज्ञासा भरा सवाल उठा और वह परोपकारी बाबा को देखने उस विशाल बरगद के नीचे पहुंच गया।
‘‘आओ बेटा इकलू। बड़े दिनो के बाद आये हो। नानी के यहां से अच्छे मोटे होकर लौटे हो।’’
‘अंएं ये क्या?’’ इकलू को बाबा की आवाज जानी पहचानी लगी। इकलू ने अपने दिमाग पर जोर डाला पर कुछ याद नहीं आया।
‘‘क्या सोच रहे हो बेटा! क्या परीक्षा में फस्र्ट आना चाहते हो?’’
‘इन्हें तो सब मालूम है।’ प्रभावित होते हुए उसने सिर हिलाकर कहा- ‘‘हां बाबा, आपका आर्शीवाद मिले तो संभव हो। वर्ना मेरी बीमारी की वजह से पर्चे तो कुछ खास नहीं हुए है।’’
तो सुनो बेटा तुम आज से ही जलेबिया ंखाकर व्रत करना शुरू कर दो पर हां उत्तम फल पाने के लिए व्रत के साथ लाल रंग के कपड़े पहनना न भूलना।
‘अंएं ये क्या?’ यह सुनकर इकलू चूजा चैंका। सभी को यही व्रत? बाबा ने सभी मुर्गियो से भी यही कहा है। मुझे भी फस्र्ट आने के लिए यही कहा है। कुछ सोचता हुआ इकलू वहां से चल पड़ा। वह सीधा अपने मित्र टिकलू के पास जा पहुंचा और सारी बात कह सुनायी।
टिकलू बोला- ‘‘मुझे तो दाल में कुछकाला नजर आ रहा है।’’
‘‘अरे! मुझे तो पूरी दाल ही काली नजर आ रही है। यह कोई बाबा नहीं धूर्त है जिसने सभी को धनचक्कर बना रखा है।’’
दोनों मित्र जंगल की टोह लेने चल पड़े। जंगल में जलेबियों और लाल कपड़ों का व्यापार जोरो से चल रहा था। ऊंचे दामो पर लोग जलेबी खरीद रहे थे। जलेबी की मांग बढ़ जाने से मिठाई वाले मनमानी कीमत ले रहे थे और कम तोल रहे थे। दुगनी कीमत लेकर दर्जी लाल वस्त्र सिल रहा था। बाजार में भी लाल कपड़ा धड़ाधड़ बिक रहा था।
‘‘लगता है पैसा कमाने के चक्कर में यह सब चक्कर चलाया गया है। टिकलू ने अपना संशय रखा तो इकलू बोला- ‘‘इस तरह तो मुर्गियों को बेवकूफ बनाया जा रहा है और सब आंख मूंदकर इस बात पर भरोसा कर रहे है।’’
इकलू और टिकलू ने मिलकर अपने मित्र चूजो को एकत्रित किया और इस षड़यंत्र का पर्दाफाश करने की एक योजना बनाई। योजनानुसार चूजों की भीड़ उसविशाल पेड़ की ओर बढ़ने लगी। एकाएक सभी चूजो ने मिलकर बरगद के नीचे बैठे उस बाबा पर हमला बोल दिया। वे उस पर चढ़कर अपनी चोंचे माने लगे। ढ़ोगी वेश में बैठा लोमड़ इस आक्रमण से बौखला कर ओढ़ा लबादा और मुखौटा उतार कर अपने असली वेश में आ गया। शोर सुन जंगल के दूसरे जानवर भी आ चुके थे। लोमड़ की असलियत सभी के समाने थी। सभी जानवर लोमड़ को खदेड़ते हुए शेरसिंह के पास ले गये।
लोमड़ ने अपना अपराध स्वीकार करते हुए कहा कि बन्दरू हलवाई, गरदू दर्जी तथा लंगूरी दरजन सभी ने मिलकर पैसा कमाने के लिए यह योजना बनाई थी। अभी तो केवल इस चक्कर में केवल मुर्गिया ही फंसी थी। उनका इरादा तो ये चक्कर चलाकर जंगल के सभी पशुपक्षियों को ठगने का था। जंगल के कानून के अनुसार सभी ठगों को सजा सुनाई गई। शेरसिंह ने सभी को ललकारते हुए कहा अब कभी ऐसे ठगों के चक्कर में आकर घनचक्कर मत बनना बेवकूफ मुर्गियों।
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इकलू चूजा खुश खुश लौटा है नानी के घर से। अपने घर वापस आकर और खुश था। एक एक कर अपने प्यारे खिलौनो से खेलने में मस्त हो गया। तभी मां ने उसके हाथ में पैसे देकर गर्मा गरम जलेबी लाने को कहा। जलेबी की बात सुनकर वह और खुश हो गया। मीठी रस से भरी जलेबी के नाम से ही उसके मुंह में पानी भर आया। खुश होते हुए वह थैला उठाए बाजार की ओर निकल पड़ा। वह सोच मन ही मन सोच रहा था ‘आज बहुत दिनों से घर लौटज्ञ हूं इसलिए मां मेरे लिए जलेबिया मंगवा रही है।
बाजार देखा तो वह दंग रह गया। बंदरू हलवाई की दुकान को जंगल की मुर्गियो ने घेर रखा है। गजब की भीड़ लगी हुई है। बावजूद इसके कि जलेबी के भाव बढ़े हुए है। जिसे देखो हर कोई जलेबी लेने की जल्दी में दिख रहा है।
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‘‘क्या तुम्हें मालूम नही?’’ उत्तर देने की बजाय निबलू प्रश्न दाग डाला। और इस तरह उसे घूरने लगा जैसे कि वह कोई बेवकूफी भरी बात कर रहा हो?
‘‘चलो चलो पीछे लाईन में लगो। पंक्ति मत तोड़ो। देर से आते हो और बीच में घुसते हो।’’ कई जानवर उसे देख चिल्लाने लगे। कुछ तो उसे पीछे धकेलने लगे। अजीब सी रेलम-पेलम मची हुई है। इकलू ने बुरासा मंुह बनाया और पीछे जाकर पंक्ति में खड़ा हो गया। दोपहर बाद सका नंबर आया तब तक जलेबिया बिक चुकी थी। उसे थोड़ी जलेबी पर ही संतोष करना पड़ा।
इकलू चूजे को आज एक बात और अजीब दिखी। रास्ते पर आते जाते चलते सभी मुर्गियों ने लाल रंग के कपड़े पहन रखे है। किसी ने लाल रंग के सलवार कुर्ता पहना है तो कोई लाल चुनर ही ओढ़े हुए है। वहां हलवाई की दुकान पर भी सभी मुर्गिया लाल रंग के वस्त्रों में ही नजर आयी। चारांे ओर लाल रंग ही लाल रंग बिखरा हुआ था। इकलू को ध्यान आया कि आज उसकी मां ने भी लाल रंग की साड़ी पहन रखी है। जिसमें वह बहुत संदर लग रही थी।
‘‘लो मां सिर्फ दो ही जलेबी मिल पायी है.....’’ इकलू ने घर जाकर मां को जलेबी थमाते हुए कहा।
‘‘क्या कहा? सिर्फ देा ही जलेबी? हाय! मैं कैसे व्रत करूंगी?’’
‘‘आज कोई विशेष त्यौहार है मां?’’
‘‘बेटा! आज हम सीाी मुर्गियों का ्रत है। यह व्रत हमें लाल कपडत्रे पहनकर जलेबी खाकर ही पूरा करन है।’’
इकलू चकराया ‘‘यह कौनसा व्रत है मां?’’
‘‘यह मंगलकारी सब मनोकामना पूरी करने का वाला व्रत है। अभी कुछ दिन पहले ही एक बाबा ने हम सब मुर्गियों को यह व्रत सुझाया है। दरअसल सब मुर्गिया अपने अंडांे व चूजो के लिए चिन्तित थी। जैसे ही वह अण्डे देती है उनके अण्डे बाजार में बेचने के लिए उठा लिए जाते है। कुछ अण्डों से अगर चूजे निकल भी आये तो वह भी रसोईघर में पहुंच जाते है हलाल होने के लिए।’’
‘‘पर मां यह कोई नई बात तो नहीं। ऐसा तो हमेशा से होता रहा है।’’
‘‘तभी तो बाबा ने हमें तबाही से बचने के लिए यह उपाय सुझाया है। हमें हर रोज ण्डा देने के बाद भी संतान नहीं मिल रही थी।’’
‘कोई व्रत इसे कैसे रोक सकता है?’ इकलू के मन में जिज्ञासा भरा सवाल उठा और वह परोपकारी बाबा को देखने उस विशाल बरगद के नीचे पहुंच गया।
‘‘आओ बेटा इकलू। बड़े दिनो के बाद आये हो। नानी के यहां से अच्छे मोटे होकर लौटे हो।’’
‘अंएं ये क्या?’’ इकलू को बाबा की आवाज जानी पहचानी लगी। इकलू ने अपने दिमाग पर जोर डाला पर कुछ याद नहीं आया।
‘‘क्या सोच रहे हो बेटा! क्या परीक्षा में फस्र्ट आना चाहते हो?’’
‘इन्हें तो सब मालूम है।’ प्रभावित होते हुए उसने सिर हिलाकर कहा- ‘‘हां बाबा, आपका आर्शीवाद मिले तो संभव हो। वर्ना मेरी बीमारी की वजह से पर्चे तो कुछ खास नहीं हुए है।’’
तो सुनो बेटा तुम आज से ही जलेबिया ंखाकर व्रत करना शुरू कर दो पर हां उत्तम फल पाने के लिए व्रत के साथ लाल रंग के कपड़े पहनना न भूलना।
‘अंएं ये क्या?’ यह सुनकर इकलू चूजा चैंका। सभी को यही व्रत? बाबा ने सभी मुर्गियो से भी यही कहा है। मुझे भी फस्र्ट आने के लिए यही कहा है। कुछ सोचता हुआ इकलू वहां से चल पड़ा। वह सीधा अपने मित्र टिकलू के पास जा पहुंचा और सारी बात कह सुनायी।
टिकलू बोला- ‘‘मुझे तो दाल में कुछकाला नजर आ रहा है।’’
‘‘अरे! मुझे तो पूरी दाल ही काली नजर आ रही है। यह कोई बाबा नहीं धूर्त है जिसने सभी को धनचक्कर बना रखा है।’’
दोनों मित्र जंगल की टोह लेने चल पड़े। जंगल में जलेबियों और लाल कपड़ों का व्यापार जोरो से चल रहा था। ऊंचे दामो पर लोग जलेबी खरीद रहे थे। जलेबी की मांग बढ़ जाने से मिठाई वाले मनमानी कीमत ले रहे थे और कम तोल रहे थे। दुगनी कीमत लेकर दर्जी लाल वस्त्र सिल रहा था। बाजार में भी लाल कपड़ा धड़ाधड़ बिक रहा था।
‘‘लगता है पैसा कमाने के चक्कर में यह सब चक्कर चलाया गया है। टिकलू ने अपना संशय रखा तो इकलू बोला- ‘‘इस तरह तो मुर्गियों को बेवकूफ बनाया जा रहा है और सब आंख मूंदकर इस बात पर भरोसा कर रहे है।’’
इकलू और टिकलू ने मिलकर अपने मित्र चूजो को एकत्रित किया और इस षड़यंत्र का पर्दाफाश करने की एक योजना बनाई। योजनानुसार चूजों की भीड़ उसविशाल पेड़ की ओर बढ़ने लगी। एकाएक सभी चूजो ने मिलकर बरगद के नीचे बैठे उस बाबा पर हमला बोल दिया। वे उस पर चढ़कर अपनी चोंचे माने लगे। ढ़ोगी वेश में बैठा लोमड़ इस आक्रमण से बौखला कर ओढ़ा लबादा और मुखौटा उतार कर अपने असली वेश में आ गया। शोर सुन जंगल के दूसरे जानवर भी आ चुके थे। लोमड़ की असलियत सभी के समाने थी। सभी जानवर लोमड़ को खदेड़ते हुए शेरसिंह के पास ले गये।
लोमड़ ने अपना अपराध स्वीकार करते हुए कहा कि बन्दरू हलवाई, गरदू दर्जी तथा लंगूरी दरजन सभी ने मिलकर पैसा कमाने के लिए यह योजना बनाई थी। अभी तो केवल इस चक्कर में केवल मुर्गिया ही फंसी थी। उनका इरादा तो ये चक्कर चलाकर जंगल के सभी पशुपक्षियों को ठगने का था। जंगल के कानून के अनुसार सभी ठगों को सजा सुनाई गई। शेरसिंह ने सभी को ललकारते हुए कहा अब कभी ऐसे ठगों के चक्कर में आकर घनचक्कर मत बनना बेवकूफ मुर्गियों।