बधाई उन बच्चों को जिनकी मुर्गी ने पहला सुनहरा अण्डा दिया

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सोमवार, 24 अगस्त 2009

अजय के दोस्त

अजय के दोस्त
अजय के पिता को मिले इस सरकारी क्वार्टर के पास दूसरा मकान नही था। न ही अजय के कोई छोटा भाई बहन। पड़ोस के अभाव में अजय बिल्कुल अकेला महसूस करता। वह हमेशा सुस्त व उदास रहता। वह मां से कहता- ’’मां मै किसके साथ खेलूं।’’ उसका मन बहलाने के लिए मां उसके साथ थोड़ी देर खेल लेती और फिर अपने कामों में लग जाती। एक शाम अजय बहुत खुश होता हुआ घर में घुसा।मां एक खुशखबरी लाया हूं। पप्पी ने चार बच्चों को जन्म दिया है। ‘‘छोटे -छोटे, गोल - मटोल, झबरीले बालो वाले पिल्ले बहुत सुन्दरे है मां।’’ देख तू अभी उनके पास मत जाना बेटा, नही तो कुतिया तुम्हें काट लेगी।’’ वो क्यों मां? मुझे तो उस पीले, चितकबरे काले पिल्ले से ज्यादा सफेद पिल्ला पसन्द आया है। मंै उसे पालंूगा।’’‘‘नहीं - नहीं अभी तुम पिल्लों को हाथ नही लगाना, चलो हाथधोकर खाना खा लो। अजय ने फटाफट हाथ धोए और खाना खाने बैठ गया। उसका ध्यान उन पिल्लों में लगा हुआ था। सोच रहा था उनको कहां रखा जाए। ‘‘आराम से चबा-चबाकर खाओं अजय, नहीं तो पेट मे दर्द होगा।’’ मां ने अजय को टोंका।खाना खाकर अजय फिर वहां पहुंच गया जहां पप्पी कुतिया ने बच्चे दिए थे। पप्पी उसे देख गुर्राने लगी। उसकी गुस्से से भरी अंाखों को देखकर अजय डर गया। ‘‘दूर रहना अजय नहीं तो पप्पी काट खाएगी’’ पीछे से आती मां ने हिदायत दी। ‘‘वह क्यों गुर्रा रही है मां? ’’ उसे डर है कि कहीं तुम उसके बच्चों को न ले जाओं।’’ ‘‘क्या जानवर भी अपने बच्चों से इतना प्यार करते है, मां ?’’ ‘‘हां बेटा, जानवर भी समझदार होते है किन्तु ये बेचारे हमारी तरह बोल नहीं सकते।’’ मां ने मुस्कुराकर कहां। मां और अजय यू ही खड़े थोड़ी देर तक उन्हें देखते रहे फिर मां अन्दर चली गई। अजय वहीं खेलने लगा। दूसरे दिन स्कूल से लौटकर अजय सीधा वहीं पप्पी के पास पहुच गया। पप्पी सोई हुई थी और पिल्ले उस पर कूद रहे थे। अजय के आने की आहट सुन पप्पी चौंक उठी। सामने उसे पाकर वह चौकस हो इधर उधर देखने लगी।‘‘ आज पप्पी कल की तरह गुर्राई नहीं, पर देखो न मां कैसी चौकसी कर रही है अपने बच्चांे की। अजय अपनी मां से बोला जो बदामदे मे बैठी स्वेटर बुन रही थी। अजय आगे बोला-‘‘क्या मां मै अब इसके बच्चों को हाथ लगा सकता हूं।’’ नहीं मां ने ‘ना’ में गर्दन हिलाई। आठ-दस दिन बाद जब पिल्ले कुछ बडे हो जाएंगे तब तुम इनसे खेलना। जानवर भी इंसानों के बहुत अच्छे दोस्त होते है।’’ ‘‘सच! मां ये बड़े होकर मेरे साथ खेलेंगे?’’ खुशी से अजय ने ताली बजाई। ‘‘हां वह खुद तुम्हारे पास दौड़कर आएंगे।’’ पप्पी कुतिया अब भी अजय के आने पर चौकन्नी हो जाती, पर कहती कुछ नहीं। वह अपने पिल्लों का अब भी पूरा ध्यान रखती थी। जैसे ही काला नटखट पिल्ला अजय के पास आना चाहता। पप्पी उसे मुंह मंे दबाकर खींच लेती। कभी पीले पिल्ले की टंाग पकडकर खंींचती और पिल्ले उछल - उछलकर भगाने की कोशिश करते मिटटी में लोट लगाते। यह सब देख अजय बहुत खुश होता। ‘‘पप्पी कुतिया अब पिल्लों से लड़ाई करने लगी है मां। क्या अब वह इन्हं प्यार नहीं करती?’’ अजय ने देखा पप्पी पिल्लांे को काटती है। उनके पीछे दौड़ती हैं। उन्हंे जमीन पर घसीटती है। ‘‘देखो मां! कैसे दांत पप्पी ने सफेद झबरीले पर गड़ा दिए अजय दर्द का अहसास कर बोला।‘‘नहीं बेटा! पप्पी इन्हंे मार नहीं रही बल्कि लड़ाई के दांव पेच सिखा रही है ताकि ये समय आने पर अपनी रक्षा करना सीख सके।’’ ‘‘ओह ! जानवर वाकई में बड़े समझदार होते है। पप्पी और पिल्लों को गुलांछिया खाते देख अजय बहुत खुश होता। अब वह पहले की तरह शाम को उदास नहीं होता था और न ही मां के साथ खेलने की जिद करता। इन दोस्तों को पाकर वह बहुत खुश था और छोटे दोस्त भी अजय से पूरी मित्रता निभाते। वे अजय के पैरों में लिपट कर प्यार जताते। उनके रेशमी बाल की छुअन से अजय को गुदगुदाहट होती सफेद झबरीला पिल्ला अजय की गोद से नीच कूद जाता। अजय उसकी पीठ थपथपाते हुए कहता-‘‘शैतान कहीं का।’’ सुबह स्कूल जाते समय रास्ते में सभी पिल्ले अजय के आगे - पीछे दौड़ लगाते चलते। अजय को अब अकेलापन बिल्कुल नहीं लगता बल्कि उसे लगता वह राजा है और ये उसकी सेना है जो किसी खतरे से उसकी रक्षा करेगी। यह सोच अजय अकड़ कर चलने लग जाता। इस तरह पिल्ले हर रोज अजय को स्कूल छोड़ने आते। अजय स्कूल गेट में घुस पिल्लों से टाटा कर लेता और पिल्ले वहीं बाहर गेट पर बनी झालियों मंे चढ़-चढ़कर पांव फंसाकर भौंकते लगते। ‘‘अभी जानवरों के लिये स्कूल नहीं खुले हैं। हां, किन्तु यह वायदा करता हूं कि जब भी ऐसा कोई स्कूल खुलेगा जिसमें कुत्तों को पढ़ाया जायेगा। तुम अवश्य पढ़ सकोगे, दोस्त। तुम्हारा दाखिला मैं करवाÅंगा।’’ अजय उनसे हाथ हिलाकर विदा ले लेता। शाम छुट~टी के बाद जब वापस घर के लिए लौटने लगता तो वहीं गेट के बाहर चारांे पिल्ले उसका इन्तजार करते मिलते। स्कूल के अन्य लडकों के सामने अजय की गर्व से छाती फूल जाती। वह कहता-‘‘आ गए मेरे सैनिक। चलों अपने राजा को ले चलों।’’ फिर वहीं अजय के आगे-पीछे पिल्लों की दौड़ शुरू हो जाती। अजय सफेद झबरीले को गोद मंे उठा लेता और प्यार करने लगता पर झबरीया अजय की गोद से नीचे कूद पड़ता और अपने भाई बहनों के साथ दौड़ में शामिल हो जाता। अजय की मां कहती- ‘‘तुम पिल्लों को गोद में न उठाया करों ये गंदे हैं तुम्हंे खुजली हो जाएगी और उसके हाथ साबुन से धुलवाती। अजय ने सोचा मां कहती है, ‘पिल्ले गंदे हैं क्यांे न मैं इन्हंे नहला दिया करूं। छु~टटी के दिन अजय ने पिल्लों को नहलाने के लिए जैसे ही उन पर पानी डाला पानी गिरने से पिल्ले हड़बड़ा उठे और बालों में से पानी झटकते हुए भागने लगे। अजय ने उसकी कसकर टांग पकड़कर खींच ली। नन्हें पिल्ले चिल्लाने लगे। यह देख अजय बोला- ‘‘मां कहती है, तुम गंदे हो। मेरे दोस्त बनना है तो तुम्हें साफ रहने के लिए नहाना होगा।’’ ‘‘बेटा क्यांे जानवरों को परेशान कर रहे हो।’’ पिल्लों की चिल्लाहट सुन मां बाहर आकर बोली। ‘‘ मां मैं इन्हें साफ रहने का सबक सिखा रहा हंूै।’’ यह सुन मां मुस्कुरा दी और उसके दोस्तो के लिए दूध रोटी देने लगी। दूध रोटी खाकर पिल्ले बढ़ने लगे। एक दिन स्कूल के एक शरारती लड़के ने सफेद झबरीले पिल्ले पर पत्थर फेंक दिया। पत्थर उसकी टांग पर लगा और खून बहने लगा। सफेद झबरीला अपनी टांग उपर उठाए जोर -जोर से कू-कू कर रोने लगा। अपने नन्हंे दोस्त की टांग से बहते खून और आंखांे के आंसुओं को देख अजय आज बहुत उदास था। ‘‘मां झबरीले को बहुत दर्द हो रहा होगा। मां उस लड़के ने इसे पत्थर क्यों मारा। अजय आंखो में आंसू भर मां से बोला।‘‘‘‘कुछ लोग ऐसे ही निर्दयी होते है बेटा, जो इन बेजुबानों पर जुल्म करते है। ये भी घरती मां की संतान है इन्हंे भी जीने का उतना ही हक है। इंसान को चाहिए कि इन्हंे मारे। न ही चोट पहंुचाएं बल्कि प्यार से रखे तो ये अच्छे मित्र साबित हो सकते है, मां ने अजय को समझाना चाहा।‘‘हां मां, तुम बिल्कुल ठीक कहती हो। इन्हंे पाकर मैं कितना खुश हूं कहता अजय मां की साडी में लिपट कर आगे बोला-‘‘अब मैं किसे भी इन्हें पत्थर मारने नहीं दूंगा।’’

8 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत अच्छा आज तो जैसे बाल साहित्य खोता जा रह है तकनीक की भीड़ में

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  2. बहुत अच्छा लिखा है आपने. वधाई हो. जारी रहें.
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    उल्टा तीर पर पूरे अगस्त भर आज़ादी का जश्न "एक चिट्ठी देश के नाम लिखकर" मनाइए- बस इस अगस्त तक. आपकी चिट्ठी २९ अगस्त ०९ तक हमें आपकी तस्वीर व संक्षिप्त परिचय के साथ भेज दीजिये. [उल्टा तीर] please visit: ultateer.blogspot.com/

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  3. 'अजय का दोस्त'कहानी न केवल बल-मन की संवेदनाओं को उजागर करती है ,बल्कि निस्वार्थ दोस्ती एवं सुख-दुःख की अनुभूतियों का एहसास भी कराती है ,भले जानवर के बच्चे दोस्त क्यों न हो . बल-मन की जिज्ञाषा एवं मित्र बनाने की प्रवृति का बखूबी से चित्रण किया गया है .विमलाजी को उसके लिए बहुत-बहुत बधाई !
    दिनेश कुमार माली

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  4. hummmmmmmmm bahut khoob...bahut achha likha hai...mere blog bhi padharen....swagat hai...

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