राजस्थान साहित्य अकादमी से वर्ष 1995में शम्भूदयाल सक्सेना पुरस्कार से और वर्ष 2002 में राष्ट्रीय बाल शिक्षा एवं बाल कल्याण परिषद लाडनूं से श्यामादेवी कहानी पुरस्कार विजेता विमला भंडारी की प्रस्तुत है कुछ चुनिंदा बाल कहानियां
नटखट तितली की मां बीमार थी। वह फूलों का मकरंद लाने में असमर्थ थी। मां की यह स्थिति देख नटखट तितली बोली- ‘‘मां आप आराम करो। आज मैं फूलों का मकरंद ले आऊंगी।’’ ‘‘जरूर जाओ बेटी, पर सुन्दर-ताजे, खुशबू वाले फूलों का मकरंद ही चुनना, साथ ही जरा तितली पकड़ने वाले बच्चों से सावधान भी रहना।’’ मां की बात पूरी सुने बिना ही नन्हीं नटखट तितली अपने रंग-बिरंगे पंख फैला कर उड़ चली। बगीचे में रंग-बिरंगे फूल खिले थे। यह देख तितली खुशी से झूम उठी। ‘‘आ हा! कितने सुन्दर फूल! कमाल की खुशबू है इनमें!’’ वह सफेद फूलों की ओर बढ़ी और उन पर मंडराते हुए गाने लगी- ‘‘मैं अलबेली, तितली मतवाली, फूलों का मकरंद चुनने को आई।’’ ‘‘तुम्हारा क्या नाम है महकदार फूलों?’’ ‘‘हम चमेली के फूल हैं।’’ अलबेली तितली के स्वागत में चमेली के फूलों ने अपनी पंखुड़ियां फैला दीं। वह चमेली के फूलों का मकरंद चखने ही वाली थी कि उसकी नजर पीले-पीले हवा में झूमते हुए फूलों पर पड़ी। वह चमेली के फूलों को छोड़ उनकी ओर उड़ चली। ‘‘कहां चली ओ अलबेली मतवाली?’’ फूलों ने पुकारा। ‘‘कल फिर आऊंगी, अलविदा चमेली।’’ यह कह कर नटखट तितली अब पीले फूलों पर मंडराते हुए गीत गुनगुनाने लगी। फिर धीरे से उनके कान में बोली- ‘‘तुम बहुत सुन्दर हो, क्या नाम है तुम्हारा?’’ ‘‘हम गेंदे के फूल हैं।’’ ‘‘मैं तुम्हारा मकरंद लेने आयी हूं।’’ तितली के स्वागत में फूलों ने अपनी पंखुड़ियां फैला दीं। ‘‘लो हमारा मीठा-मीठा मकरंद ले जाओ अलबेली।’’ नटखट तितली गेंदे के फूलों पर बैठने वाली ही थी कि उसकी नजर चम्पई रुग के फूलों पर पड़ी। वह अपना प्रलोभन रोक नहीं सकी और उनकी तरफ उड़ चली। ‘‘कहां चली ओ अलबेली मतवाली, हमारा मकरंद लेती जाओ!’’ ‘‘मैं कल फिर आऊंगी।’’ यह कह कर तितली चम्पई फूलों की ओर बढ़ गई। उन्हें भी वह वहीं गीत सुनाने लगी। फिर कुछ रूक कर बोली- ‘‘आ हा! क्या तेज महक है तुम्हारी, तुम कौनसा फूल हो?’’ ‘‘मैं चम्पा का फूल हूं।’’ ‘‘मैं तुम्हारा मकरंद लेने आई हूं।’’ ‘‘तुम्हारा स्वागत है, जितना चाहे मीठा-मीठा मकरंद ले लो। तभी उसकी नजर गुलाबी फूलों पर पड़ी। दरअसल बाग के खूबसूरत सुगंधित फूलों के बीच वह भ्रमित-सी हो गई थी। ‘‘कल फिर आऊंगी अलविदा!’’ यह वायदा करती तितली गुलाबी फूलों पर मंडराने लगी। ‘‘भीनी भीनी महक वाले सुन्दर फूल! तुम्हारा क्या नाम है?’’ ‘‘हम गुलाब हैं, यहां के राजा!’’ ‘‘मैं तुम्हारा मकरंद ले जा सकती हूं।’’ तितली के रंग-बिरंगे पंखों से खुश होकर गुलाब ने हंसकर ‘हां’ कर दी। ‘‘तुम बहुत सुन्दर हो मतवाली!’’ गुलाब से अपनी प्रशंसा सुनकर नटखट तितली झूम उठी। गुलाब की खुशबू से मस्त होकर फूलों पर थिरकने लगी। हवा में लहरा-लहरा कर चक्कर लगाने लगी कि किसी गुलाब का मकरंद ले जाऊं। इतने में एक नटखट गुलाब ने अपना कांटा तितली के पंखों में चुभो दिया। ‘‘उई मां!’’ नटखट तितली चिल्ला उठी। उसकी आवाज सुनकर बगीचे में खेल रहे बच्चे आ पहुंचे। जैसे ही तितली ने उन्हें देखा वह सिर पर पांव रख कर भागी। वह आगे-आगे और बच्चे पीछे-पीछे दौड़ रहे थे। बच्चों से जान बचा कर वह हांफती हुई घर पहुंची। ‘‘ले आई मकरंद अलबेली!’’ मां बोली। ‘‘नहीं मां, वहां बगीचे में एक-से-एक सुन्दर फूल मुझे बुलाने लगे। सभी अपना मकरंद मुझे देना चाहते थे। फूल कभी अपने रंगों से लुभाते तो कभी अपनी खुशबू से मोहित करते।’’ ‘‘फिर क्या हुआ?’’ मां ने उत्सुकता से पूछा। ‘‘मां मैं बारी-बारी से सभी फूलों पर मंडरा कर उनका आनंद ले रही थी। अंत में मुझे फूलों का राजा गुलाब पसंद आया। सबसे सुन्दर गुलाब मैं चुन ही रही थी कि एक गुलाब ने अपना कांटा मेरे पंखों में चुभो दिया।’’ दर्द से कहराती नटखट तितली अपने पंख खोलने और समेटने लगी। ‘‘ओह मेरी बच्ची!’’ ‘‘मेरी आवाज सुन शरारती बच्चों का झुंड पकड़ने आ पहुंचा। उनसे बचकर भाग आई। मां मैं तुम्हारे लिए फूलों का मकरंद नहीं ला सकी।’’ आंखों में आंसू भर कर नन्हीं तितली बोली। ‘‘कोई बात नहीं अलबेली, परन्तु मेरी बात ध्यान से सुनो। जीवन में हमें बहुत-सी वस्तुएं आकर्षित करती मिलेंगी किन्तु अपने ध्येय की प्राप्ति के लिए मन को स्थिर करना चाहिए। उसे इधर-उधर भटकाने नहीं देना चाहिए। न ही किसी प्रलोभन में आना चाहिए। तभी हम अपने उद्देश्य को प्राप्त कर सकते है। जाओ कल फिर कोशिश करना।’’ मां उसे पुचकारते हुए बोली।
स्कूल से घर पहुंचते ही आलोक की नजर अलमारी पर रखे लड्डू की तरफ गई। प्रसन्नता से आगे बढ़ते हुए आलोक ने मां से पूछा- ‘‘मम्मी यह लड्डू कहां से आया ?’’ ‘‘ बेटा ! यह कमला की सगाई का लड्डू है। ’’ ‘‘ कौनसी कमला की सगाई..........? ‘‘लड्डू को मुंह की तरफ ले जाते हुए आलोक ने फिर प्रश्न किया। ‘‘अपने राधाबाई की बेटी कमला की’’ लड्डू को लेकर मुंह की तरफ बढ़ा आलोक का हाथ एकाएक वही रूक गया। उसने अनमने मन से लड्डू को फिर से प्लेट में रख दिया। मां की तरफ बढते हुए बोला, ‘‘क्या कह रही हो मम्मी? कमला की सगाई कर दी। अरे उसने तो अभी मेरे साथ छठी कक्षा में दाखिला लिया है।‘‘ आश्चर्य से आलोक बोला। ‘‘हां बेटा राधाबाई बता रही थी कि अगले महीने कमला का विवाह कर रही है।‘‘ मां ने आगे बताया। ‘‘नही मम्मी, यह ठीक नही। यह कोई उम्र है उसके ब्याह रचाने की। फिर कमला की पढ़ाई का क्या होगा? उसकी पढ़ाई बीच में छूट जायेगी। अभी उसे आगे पढ़ना चाहिए।’’ मां हंसते हुए बोली- ‘‘तुझे इससे क्या? इन लोगों मे कोई लड़कियों को पढ़ाते है क्या?’’ ‘‘नही मम्मी, आपको कमला का विवाह रोकना ही होगा। आपको राधाबाई से इस बारे में बात करनी चाहिए। उन्हें समझाना चाहिए। आज हमारे स्कूल में ‘‘बालिका’’ नाम से एक डोक्यूमेन्ट्री फिल्म दिखाई गई जिसमें लडकियों के साथ होने वाले भेदभाव व अत्याचारों को दिखाया गया। इसी कारण हमारा समाज पिछड़ा हुआ है। आपको मालूम है मम्मी लड़कियों के साथ भेदभाव रखने में सबसे ज्यादा दोषी स्वयं लड़की के माता-पिता होते हैं। वे ही लड़की की पढ़ाई पर ध्यान नही देकर उसे घर के काम काज में लगा देते है। इस पर भी वे उसके खाने-पीने पर भेदभाव करते है। बाल विवाह करके तो वे उसें अज्ञान के अंधेरे में ही धकेल देते है।’’ ‘‘अरे आज तू बहुत बड़ी-बड़ी बाते कर रहा है।’’ अपने नन्हें बेटे के मुंह से ऐसी बाते सुनकर हंसती हुई आलोक की मां उठ खड़ी हुई और अपने कार्यों में व्यस्त हो गई। आलोक ने महसूस किया कि मम्मी ने उसकी बातों को कोई महत्व नहीं दिया। अब उसे ही कुछ करना होगा। मन में ठानकर आलोक अपनी पड़ौसिन सहपाठी शिखा के पास गया। उसे सारी बात बताई। आलोक की बात सुन शिखा पूरे जोश के साथ उसे सहयोग देने को तैयार हो गई। अब दौनो सहपाठी राधाबाई के घर की और चल पडे़। राधा बाई के घर के बाहर दालान में एक खटिया पर बैठे दो विशालकाय मनुष्य एक दूसरे को भद्दी गालिया देते हंस रहे थे। शराब की दुर्गन्ध वातावरण में फैली हुई थी। आगे बढकर आलोक ने एक व्यक्ति से राधाबाई के बारे में जब पूछा तो उसने राधाबाई को एक भद्दी सी गाली देते हुए आवाज दी। अन्दर कमला रेशमी गोटे के वस्त्रों मे सजी धजी गुडिया सी बनी बैठी हुई थी। उसने हल्का सा घूंघट भी डाल रखा था। उसके हाथों मे मेंहदी रची हुई थी। छोटा सा कोठरीनुमा कमरा पुरूषों व बच्चों से खचाखच भरा हुआ था। यह दृश्य देख कर अलोक एक पल के लिए ठिठक गया। दूसरे ही क्षण वह साहस बटोर कर राधाबाई की ओर उन्मुख होते हुए बोला- ‘‘तुम कमला का बाल विवाह करके ठीक नही कर रही हो राधाबाई।’’ आलोक की बात सुन वहां बैठे सभी स्त्री पुरूषों के चेहरे पर मुस्कान तैर गई। आलोक ने अपनी बात जारी रखी- ‘‘आपको कमला को आगे पढ़ाना चाहिए।’’ ‘‘तुम क्या कहते हो बबुआ इतने सब लोगों के बीच राधाबाई सहमी सी कहने लगी- ’’तुम घर जाओं बबुआ मैं तुमसे वहीं बात करूंगी।’’ ‘‘घर क्यों? यही सबके बीच में सबके सामने कहूंगा कि आप कमला के साथ अन्याय कर रही है? उसकें भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रही है। यह हम नहीं होने देगें।’’ ‘‘ब्याह करना कोई अन्याय है?’’ वहां बैठी एक स्त्री ने हंसते हुए कहा। ‘‘किन्तु विवाह सही उम्र में होना चाहिये। मैं अभी छोटी हूं और पढ़ना चाहती हूं’’ कमला घूंघट हटाते हुए बोली। ‘‘हां बिल्कुल पढ़ाई से वंचित कर बाल विवाह करना अन्याय है।’’ ‘‘जाओं बबुआ जाओ’’ राधाबाई आलोक से विनती के स्वर में बोली। इस खुशी के मौके पर हम गरीब के रंग में भंग मत डालो। हम गरीब सही पर सब लोगों के बीच हमारा तमाशा मत बनाओं। मैं तुम्हारे हाथ जोडती हूं बबुआ।‘‘ गिड़गिड़ाती हुई राधा बाई ने कमला को अंदर धकेल दिया। फिर साड़ी के पल्ले को मुंह में ठूंसकर रो पड़ी। इस पर घर में शोर-शराबा सा मच गया। हंगामा सुनकर बाहर बैठे शराबी भी भीतर आ गये। जो शायद कमला के पिता व होने वाले श्वसुर थे। राधा बाई का करूण व दूसरों का आक्रामक रूख देखकर उन्होंने वहां से निकल जाना ही उचित समझा। रास्ते मंे आलोक व शिखा अपने सभी साथियों से मिले व उन सभी ने मिलकर एक योजना बनाई। योजना अनुसार दूसरे दिन स्कूल में सभी बच्चे प्रधानाचार्य जी के कक्ष मे एक साथ पहुंचे। सभी छात्र-छात्राओं को अपने कक्ष में एक साथ पाकर प्रधानाचार्य जी कुछ चौंके कि क्या बात हुई? बच्चों ने उन्हें एक पार्थना पत्र दिया जिसमंे कमला के बाल विवाह को रूकवाने का आग्रह किया हुआ था। ‘‘यह तुम लोगों ने बहुत अच्छा किया जो समय रहते मुझे सूचना दी। मैं वायदा करता हूं कि कमला का बाल विवाह रूकेगा ही नहीं बल्कि उसकी पढ़ाई भी पुन: जारी रहेगी। सभी बच्चों को प्रसन्नता से देखते हुए प्रधानाचार्य जी यह सब बोल रहे थे। प्रधानाचार्य जी ने कमला के माता पिता को स्कूल में बुलवाया। कमला के माता पिता अपने दोनों हाथ जोड़े हुए प्रधानाचार्य जी के सामने खडे़ हुए थे। ‘‘आईये, बैठिए।’’ विनम्रता से उनका स्वागत करते प्रधानाचार्य जी बोले,’’ क्या बात है आज कल कमला स्कूल नहीं आ रही।’’ कमला के माता-पिता चुप खडे़ थे। उन्हें चुप देख प्रधानाचार्य जी आगे बोले- मैंने सुना है तुमने कमला की सगाई कर दी और अगले माह उसका ब्याह करने वाले हों।’’ हां मास्टर सा अब वह स्कूल नही आयेगी.......’’। ‘‘यह तुम क्या कह रही हो? मां होकर बेटी के उन्नति के मार्ग को रोक रही हो। अभी तुमने ‘‘हमराही’’ धारावाहिक मे ‘‘अंगूरी’’ की मौत नही देखी?’’ विनम्रता तोड़ते हुए जब गुस्से से गुरूजी कड़वा सच बोले तो अंगूरी के उदाहरण मात्र से कमला के अनिष्ट की आशंका से राधाबाई का रोया-रोया कांप उठा। सारा दोष कमला के पिता पर मढ़ते हुए बोल उठी,’’ इन्होंने ही लिए कमला के ससुर से दो हजार रूपये। दो हजार रूपये के पीछे मेरी बच्ची... आप ही कुछ समझाओं मास्टर सा. ये रूपये भी शराब में उड़ा देगा यह... राधा बाई बोलती-बोलती फफक कर रो उठी। ‘‘जानते हो बाल विवाह कानूनी जुर्म है। मैं पुलिस में रिपोर्ट लिखवाकर तुम्हें जेल भिजवा दूंगा।’’ पुलिस व जेल का नाम सुनते ही कमला के शराबी पिता को थोड़ा होश आया। सारा दोष अपनी पत्नी के सिर मढ़ते हुए बोला- ’’माफ करें मास्टर सा. वो तो कमला की मां को नाच गाने का बहुत शौक है। इसी मारे ब्याह करवा रहे है कि घर में कुछ धूमधाम होगी। गुरूजी हंसते हुए बोले, ‘‘यदि नाच गाने का इतना ही शौक है तो शनिवार को स्कूल आ जाया करों। बाल सभा में खूब नाच गाने की धूम करवा दूंगा। तुम्हें शौक है तो तुम भी नाच गा लेना। पर नाच गाने की ओट में कमला का बाल विवाह न होने दूंगा।’’ प्रधानाचार्य जी कमला के माता-पिता को घुड़काते कह रहे थे। आज दीपावली का दिन था। सभी छात्र-छात्राओं ने प्रधानाचार्य से इजाजत लेकर इस विद्या मन्दिर को खूब सजाया। हमेशा दीपावली पर बंद रहने वाला स्कूल आज नयी पीढ़ी से गमक रहा था। आलोक, शिखा व अन्य बच्चों के साथ कमला भी थिरक थिरक कर काम कर रही थी। सभी का एक उद्देश्य था विद्या मन्दिर हमेशा सजा रहे। इसकी रोशनी सर्वत्र फैले। अज्ञान का अंधकार दूर हो। रात को स्कूल के हर कंगूरे पर नन्हे नन्हे दीप झिलमिला रहे थे। मानो वे अपने अस्तित्व का बोध करा रहे हो- हम दीप चाहे नन्हें नन्हें हो पर अपनी ज्योति से अमावस्या के अंधेरे को भगा सकते है।